तुम्हारे हाथों की उँगलियों की ये देखो पोरें ग़ुलाम तीसों
तुम्हारे हाथों की उँगलियों की ये देखो पोरें ग़ुलाम तीसों
ग़रज़ कि ग़श है अगर न मानो तो झट उठा ले कलाम तीसों
इमाम बारा बुरूज बारा अनासिर-ओ-जिस्म-ओ-रूह ऐ दिल
यही तो सरकार-ए-हक़-तआला की हैं मुदारुलमहाम तीसों
नहीं अजाइब कुछ आँख ही में रूतूबतें तीन सात पर्दे
ओक़ूल दस मुद्रिकात दस हैं सो करते रहते हैं काम तीसों
उलूम चौदह मक़ूला दस और जिहात सित्ता बनाए उस ने
उमूर-ए-दुनिया को ताकि पहुंचाएँ ख़ूब सा इंसिराम तीसों
बलाएँ काली हैं उस परी बिन ये तीसों रातें कुछ ऐसी 'इंशा'
कि हर महीने के दिन भी जिन को करे हैं झुक कर सलाम तीसों
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