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टुक क़ैस को छेड़-छाड़ कर इश्क़ - इंशा अल्लाह ख़ान कविता - Darsaal

टुक क़ैस को छेड़-छाड़ कर इश्क़

टुक क़ैस को छेड़-छाड़ कर इश्क़

लिपटा मुझे पंजे झाड़ कर इश्क़

ख़म ठोंक मिरी हुआ मुक़ाबिल

फ़रहाद को दूँ पछाड़ कर इश्क़

आया कज ओ वा-कज इस तरफ़ को

वामिक़ का घर उजाड़ कर इश्क़

बे-फ़ौज-ए-सरिश्क ओ परचम-ए-आह

झपटा यूँ भीड़-भाड़ कर इश्क़

अल-क़िस्सा सभों के हो मुक़ाबिल

पहुँचा अब हम को ताड़ कर इश्क़

ता-दामन-ए-कोह खेंच लाया

जंगल में उन्हों को गाड़ कर इश्क़

हम इश्क़ अल्लाह बोले तो भी

चिंघाड़ के आए फाड़ कर इश्क़

है है 'इंशा' हमारे दिल को

बे-तरह गया लताड़ कर इश्क़

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