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जो बात तुझ से चाही है अपना मिज़ाज आज - इंशा अल्लाह ख़ान कविता - Darsaal

जो बात तुझ से चाही है अपना मिज़ाज आज

जो बात तुझ से चाही है अपना मिज़ाज आज

क़ुर्बान तेरी कल पे न टाल आज आज आज

दहकी है आग दिल में पड़े इश्तियाक़ की

तेरे सिवाए किस से हो इस का इलाज आज

है फ़ौज फ़ौज-ए-ग़म्ज़ा-ओ-अंदाज़ तेरे साथ

अक़्लीम-ए-नाज़ का है तुझे तख़्त-ओ-ताज आज

तेरा वो हुस्न है कि जो होता तो भेजता

यूसुफ़ ज़मीन-ए-मिस्र से तुझ को ख़िराज आज

ख़ूबान-ए-रोज़गार मुक़ल्लिद तिरे हैं सब

जो चीज़ तू करे सो वो पावे रिवाज आज

आब-ए-ज़ुलाल-ए-वस्ल से अंदोह-ए-दर्द-ओ-हिज्र

नापैद घुल के होता है क्या मिस्ल-ए-ज़ाज आज

'इंशा' से अपने और ये इंकार हैफ़ है

लाया है वो कभी न कभी एहतियाज आज

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