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देखना जब मुझे कर शान ये गाली देना - इंशा अल्लाह ख़ान कविता - Darsaal

देखना जब मुझे कर शान ये गाली देना

देखना जब मुझे कर शान ये गाली देना

किस से तुम सीखे हो हर आन ये गाली देना

इख़्तिलात आप से और मुझ से कहाँ का ऐसा

वाह जी जान न पहचान ये गाली देना

अब तो नादाँ हो सुना चाहो सो प्यारे कह लो

पर तुम्हें होवेगा नुक़सान ये गाली देना

आख़िरश होगी जो उन पर तो किसे भावेगा

चंद रोज़ और ही मेहमान ये गाली देना

तोहमत-ए-बोसा अबस देती हो मंज़ूर जो हो

कर के बे-फ़ाएदा बोहतान ये गाली देना

दीजिए दीजिए है ऐन सआ'दत अपनी

आशिक़ों पर तो है एहसान ये गाली देना

तेरे ग़ुस्सा से जो 'इंशा' हो ख़फ़ा नाहक़ है

हाँ तुझे चाहिए नादान ये गाली देना

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