बंक की जल्वा-गरी पर ग़श हूँ
बंक की जल्वा-गरी पर ग़श हूँ
या'नी उस सब्ज़ परी पर ग़श हूँ
गरचे दुनिया के हुनर हैं लेकिन
अपने मैं बे-हुनरी पर ग़श हूँ
बर्क़ की तरह न तड़पूँ क्यूँकर
तेरी पोशाक-ए-ज़री पर ग़श हूँ
उस की पिशवाज़ की से लाई बास
उस की मैं गोद-भरी पर ग़श हूँ
ग़श नसीम-ए-सहरी है मुझ पर
मैं नसीम-ए-सहरी पर ग़श हूँ
उसे कुछ हो न सका 'इंशा' मैं
आह की बे-असरी पर ग़श हूँ
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