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बात के साथ ही मौजूद है टाल एक न एक - इंशा अल्लाह ख़ान कविता - Darsaal

बात के साथ ही मौजूद है टाल एक न एक

बात के साथ ही मौजूद है टाल एक न एक

है ख़िलाफ़ अपने सदा आप के चाल एक न एक

हम भी इस वास्ते बैठे हैं कि हो रहता है

तुझ सही सर्व के साये में निहाल एक न एक

यार है पास पर अब फ़र्त-ए-तरद्दुद के सबब

आ ही रहता है मिरे दिल को मलाल एक न एक

मैं तो हर-चंद बचाता हूँ व-लेकिन हैहात

खुब ही जाता है इन आँखों में जमाल एक न एक

तुझे कुछ हुस्न-परस्ती से नहीं काम वले

हो ही रहता है मिरे जी का ज़वाल एक न एक

क्या करूँ गरचे भुलाता हूँ बहुत मैं लेकिन

आ ही रहता है तिरा मुझ को ख़याल एक न एक

मज्लिस-ए-वज्द में पढ़ अपनी ग़ज़ल तू 'इंशा'

कर ही बैठेगा अभी सुनते ही हाल एक न एक

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