वो जो कहीं नहीं है
तेरा कोई दिन नहीं
तेरा कोई रूप नहीं
अबू-सुफ़ियान की हिंदा
इस रंग-मंच में
तेरी कोई जगह नहीं
अज्दाद के इंतिक़ाम में
तू कहाँ है
नस्लों की ख़ून-आशाम जंग में
तू जलती रही
कलेजा चबाने से हुसैन का ख़ून बहाने तक
ज़मीन-ओ-आसमान तुझे मलामत करते रहे
बद-बख़्त-ओ-शिकस्त-ख़ुर्दा
हिंदा बिंत-ए-अतबा
तेरा क़बीला तेरी वहशत से पहचाना गया
तेरा पागल-पन
तेरी वज्ह-ए-शोहरत है
किसी फ़ैसले किसी राय में तेरा कोई हवाला नहीं
तुझे वहशी बनाने वाले तेरे अध मरे अस्लाफ़
तेरी कोख ज़हर-आलूद कर के
तुझे बे वजूद कर के
ज़मीन पर मुसल्लत रहे आसेब बन कर
बद-बख़्त हिंदा
जो इतना शुऊ'र तुझे होता
तो समझ पाती
जबरी निज़ाम राइज करने के लिए
हर बार कोख बरबाद की गई
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