तज़ाद
दीवार पे रेंगता हुआ कीड़ा
नज़र से ओझल हो जाता है
वो दीवार के आख़िरी सिरे तक पहुँच सका
या बीच में ही गिर गया
दीवार ही तो उस के वजूद का सहारा है
वो बस रेंगने की आज़ादी चाहता है
अगर वो दीवार के आख़िरी सिरे तक पहुँच गया
तो उसे ज़िंदा रहने का सुख मिलेगा
मगर उस का ज़िंदा रहना ख़तरा है
कि उस रेंगते हुए कीड़े के मुर्दा वजूद पे
बड़े बड़े ऐवान खड़े हैं
जिस में बसने वालों ने
कीड़े को दीवार से गिराया
और अब वो इस के सोग में
सदा-ए-एहतिजाज बुलंद करेंगे
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