मोहब्बत
हम मुसीबत के मारे मोहब्बत नहीं कर सकते
मोहब्बत अगर महबूब की बाँहों में बाँहें डाले समुंदर के किनारे चलने का नाम है
तो हमें वो किनारा कभी नहीं मिला
मोहब्बत अगर महबूब के काँधों पर घड़ी-दो-घड़ी के सुकून का नाम है
तो हमें वो काँधे मयस्सर नहीं
हम तो अपनी आग में मुस्तक़िल जलते हैं
हमें क्या मा'लूम
किसी के लम्स की हिद्दत में क्या लुत्फ़ मिलता है
हम ने ख़ुद गले लगाया ख़सारे को
हम पे इनायत कैसे हो सकती है
हम ना-वाक़िफ़ हैं मोहब्बत के लवाज़िमात से
हमें नहीं आती वो अदाएँ
जो किसी की आँखों से नींद छीन लें
हमें क्या सरोकार रूठने मनाने के सारे सिलसिलों से
(889) Peoples Rate This