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बे-निशान - इंजिला हमेश कविता - Darsaal

बे-निशान

हमें क़यामत की निशानियों में ये नहीं बताया गया

कि वो मर्द नापैद हो जाएँगे

जिन्हें ख़ुदा ने एक दर्जे ऊपर रखा

ज़रा उन माओं के दूध को जांचो

इस को पी के परवान चढ़ने वाला बच्चा

बे-किरदार हो जाता है

किसी हिजड़े या ज़नख़े पे लअ'न-तअ'न मत करो

वो अपने सिवा किसी का मज़ाक़ नहीं उड़ाता

और अब आने वाली सदियों में

जो नस्लें पैदा होंगी

वो किसी ज़नख़े या हिजड़े से ज़ियादा क़ाबिल-ए-रहम होंगी

सो हमें मत दिखाओ ये हसब-नसब

हम ने ये सारे ग़ुरूर नदी नालों में बहते हुए देखे हैं

हमें क़यामत की निशानियों में ये नहीं बताया गया

कि एक वक़्त ऐसा आएगा

जब किसी की कोई शनाख़्त नहीं होगी

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