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मुझे साँसों की है थोड़ पिया - इंजील सहीफ़ा कविता - Darsaal

मुझे साँसों की है थोड़ पिया

मुझे साँसों की है थोड़ पिया

मिरा साथ अभी मत छोड़ पिया

करी मिन्नत ज़ारी तर ले सब

मैं ने हाथ दिए हैं जोड़ पिया

मिरी माँग सिंदूर से ख़ाली कर

हरी चूड़ी आ कर तोड़ पिया

कहीं पर्बत पार मैं बस जाऊँ

जहाँ दिखे न मेरा कोढ़ पिया

मैं ने पग पग तेरी बलाएँ लीं

मैं ने फूंके विर्द करोड़ पिया

मिरी आस की साँस उखड़ती है

तू मुख अपना न मोड़ पिया

तिरा हिज्र विछोड़ा मार गया

लिया सारा लहू निचोड़ पिया

मिरी आँखें रो रो ख़ाक हुईं

मिरे अश्क न ऐसे रोड़ पिया

तिरे सिक्के मुझ को सोना हैं

चल माटी मटकी फोड़ पिया

मिरा हाल धमाल है जोगन सा

मैं ने वज्द लिया है ओढ़ पिया

है ये प्रेम जन्म-जन्माता का

मुझे सात जनम तिरी लोड़ पिया

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