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दिल की राहों से दबे पाँव गुज़रने वाला - इंद्र मोहन मेहता कैफ़ कविता - Darsaal

दिल की राहों से दबे पाँव गुज़रने वाला

दिल की राहों से दबे पाँव गुज़रने वाला

छोड़ जाएगा कोई ज़ख़्म न भरने वाला

अब वो सहरा-ए-जुनूँ ख़ाक उड़ाने से रहा

अब वो दरिया-ए-मोहब्बत नहीं भरने वाला

ज़ब्त-ए-ग़म कर लिया ये भी तो न सोचा मैं ने

एक नश्तर सा है अब दिल में उतरने वाला

डूब कर पार उतरना है चढ़े दरिया से

एक दरिया ही तो है वक़्त गुज़रने वाला

जाने अब कौन सी मंज़िल में है इंसाँ का सफ़र

ये जनम लेने लगा है कि है मरने वाला

बे-सबब तो नहीं सहमे हुए ज़र्रों का सुकूत

'कैफ़' ये ख़ाक का तूदा है बिखरने वाला

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