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आसमानों से न उतरेगा सहीफ़ा कोई - इंद्र मोहन मेहता कैफ़ कविता - Darsaal

आसमानों से न उतरेगा सहीफ़ा कोई

आसमानों से न उतरेगा सहीफ़ा कोई

ऐ ज़मीं ढूँड ले अब अपना मसीहा कोई

फिर दर-ए-दिल पे किसी याद ने दस्तक दी है

फिर बहा कर मुझे ले जाएगा दरिया कोई

ये तो महफ़िल न हुई मक़्तल-ए-एहसास हुआ

आइना दे के मुझे ले गया चेहरा कोई

कितने वीरान हैं यादों के दर-ओ-बाम न पूछ

भूल कर भी इधर आया न परिंदा कोई

मैं इस आसेब-ज़दा शहर में किस से पूछूँ

क्यूँ मिरे पीछे लगा रहता है साया कोई

माँगता है मिरे आ'माल का हर रोज़ हिसाब

'कैफ़' जो मुझ में रहा करता है मुझ सा कोई

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