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ये मौसम सुरमई है और मैं हूँ - इन्दिरा वर्मा कविता - Darsaal

ये मौसम सुरमई है और मैं हूँ

ये मौसम सुरमई है और मैं हूँ

मगर बस ख़ामुशी है और मैं हूँ

न जाने कब वो बदले रुख़ इधर को

मुसलसल बे-रुख़ी है और मैं हूँ

तग़ाफ़ुल पर तग़ाफ़ुल हो रहे हैं

किसी की दिल-लगी है और मैं हूँ

तसव्वुर ही सहारा बन गया है

अजब तन्हाई सी है और मैं हूँ

ये कैसी वक़्त ने बदली है करवट

फ़रेब-ए-ज़िंदगी है और मैं हूँ

लबों पे नाम चेहरा है नज़र में

बड़ी नाज़ुक घड़ी है और मैं हूँ

उदासी 'इंदिरा' इतनी बढ़ी है

हमेशा शाइरी है और मैं हूँ

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