अभी से कैसे कहूँ तुम को बेवफ़ा साहब
अभी से कैसे कहूँ तुम को बेवफ़ा साहब
अभी तो अपने सफ़र की है इब्तिदा साहब
न जाने कितने लक़ब दे रहा है दिल तुम को
हुज़ूर जान-ए-वफ़ा और हम-नवा साहब
तुम्हारी याद में तारे शुमार करती हूँ
न जाने ख़त्म कहाँ हो ये सिलसिला साहब
किताब-ए-ज़ीस्त का उनवान बन गए हो तुम
हमारे प्यार की देखो ये इंतिहा साहब
तुम्हारा चेहरा मिरे अक्स से उभरता है
न जाने कौन बदलता है आईना साहब
रह-ए-वफ़ा में ज़रा एहतियात लाज़िम है
हर एक गाम पे होता है हादसा साहब
सियाह रात है महताब बन के आ जाओ
ये 'इंदिरा' के लबों पर है इल्तिजा साहब
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