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अभी से कैसे कहूँ तुम को बेवफ़ा साहब - इन्दिरा वर्मा कविता - Darsaal

अभी से कैसे कहूँ तुम को बेवफ़ा साहब

अभी से कैसे कहूँ तुम को बेवफ़ा साहब

अभी तो अपने सफ़र की है इब्तिदा साहब

न जाने कितने लक़ब दे रहा है दिल तुम को

हुज़ूर जान-ए-वफ़ा और हम-नवा साहब

तुम्हारी याद में तारे शुमार करती हूँ

न जाने ख़त्म कहाँ हो ये सिलसिला साहब

किताब-ए-ज़ीस्त का उनवान बन गए हो तुम

हमारे प्यार की देखो ये इंतिहा साहब

तुम्हारा चेहरा मिरे अक्स से उभरता है

न जाने कौन बदलता है आईना साहब

रह-ए-वफ़ा में ज़रा एहतियात लाज़िम है

हर एक गाम पे होता है हादसा साहब

सियाह रात है महताब बन के आ जाओ

ये 'इंदिरा' के लबों पर है इल्तिजा साहब

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