जिस का डर था वही हुआ यारो
वो फ़क़त हम से ही ख़फ़ा निकला
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ख़ूब थी अब मगर बदल सी गई
रहती है सब के पास तन्हाई
कुछ हवा का भी हाथ था वर्ना
बड़ी मुश्किल से बहलाया था ख़ुद को
दिन में जो साथ सब के हँसता था
और तो कोई था नहीं शायद
राज़-दाँ होते हैं वो घर अक्सर
सावन की इस रिम-झिम में
दुख उदासी मलाल ग़म के सिवा
दिल से दिल का रिश्ता होगा
क्या ख़बर क्या ख़ता मिरी थी कि जो