दिन में जो साथ सब के हँसता था

दिन में जो साथ सब के हँसता था

रात-भर वो अकेले रोता था

बस वही मेरी आख़िरी शब थी

चाँद जिस रात मुझ से रूठा था

आख़िरी उम्र तक रहेगी याद

साथ जिस के मैं रात भीगा था

और तो कोई था नहीं शायद

रात को उठ के मैं ही चीख़ा था

जो हक़ीक़त खुली तो ये जाना

वो मोहब्बत नहीं तमाशा था

मैं बड़ा संग-दिल था यारो जब

दिल बनाने का मेरा पेशा था

और तो सारे ख़ुश थे बस 'इंदर'

एक बुलबुल उदास बैठा था

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