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दिल से दिल का रिश्ता होगा - इंद्र सराज़ी कविता - Darsaal

दिल से दिल का रिश्ता होगा

दिल से दिल का रिश्ता होगा

पूरा जब ये सपना होगा

हर-सू निखरा निखरा होगा

बादल जब भी बरसा होगा

सावन की इस रिम-झिम में वो

सर से पा तक भीगा होगा

और तो याद नहीं पर हम ने

इश्क़ में धोका खाया होगा

मुझ को छोड़ के जाने वाले

इतना तो ये सोचा होता

तेरे बा'द मिरा क्या होगा

बा'द में तू भी रोया होगा

इक दिल है बस मेरा अपना

पर जाने कल किस का होगा

घर औरों के जलाने वाले

तेरा घर भी उजड़ा होगा

सारी रात तड़प के 'इंदर'

रोते रोते सोया होगा

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