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ख़ुद अपने उजाले से ओझल रहा है दिया जल रहा है - इनाम नदीम कविता - Darsaal

ख़ुद अपने उजाले से ओझल रहा है दिया जल रहा है

ख़ुद अपने उजाले से ओझल रहा है दिया जल रहा है

नहीं जानते किस तरह जल रहा है दिया जल रहा है

समुंदर की मौजों को छू कर हवाएँ पलटने लगी हैं

सितारा फ़लक पर कहीं चल रहा है दिया जल रहा है

कोई फ़ैसला तो करो रास्ते से गुज़रती हवाओ

ये क़िस्सा बड़ी देर से टल रहा है दिया जल रहा है

कहीं दूर तक कोई जुगनू नहीं है सितारे बुझे हैं

चमकता हुआ चाँद भी ढल रहा है दिया जल रहा है

कोई याद फिर दिल में आ कर बसी है महक सी हुई है

कोई ख़्वाब आँखों में फिर पल रहा है दिया जल रहा है

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