जिस रोज़ तिरे हिज्र से फ़ुर्सत में रहूँगा
जिस रोज़ तिरे हिज्र से फ़ुर्सत में रहूँगा
मालूम नहीं कौन सी वहशत में रहूँगा
कुछ देर रहूँगा किसी तारे के जिलौ में
कुछ देर किसी ख़्वाब की ख़ल्वत में रहूँगा
ख़ामोश खड़ा हूँ मैं दर-ए-ख़्वाब से बाहर
क्या जानिए कब तक इसी हालत में रहूँगा
कुछ रोज़ अभी और है ये आइना-ख़ाना
कुछ रोज़ अभी और मैं हैरत में रहूँगा
दिल में जो ये एहसास की कोंपल सी खुली है
ता-देर 'नदीम' उस की मसर्रत में रहूँगा
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