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उधर जो शख़्स भी आया उसे जवाब हुआ - इनाम कबीर कविता - Darsaal

उधर जो शख़्स भी आया उसे जवाब हुआ

उधर जो शख़्स भी आया उसे जवाब हुआ

कोई नहीं जो मोहब्बत में कामयाब हुआ

वो ख़ुश-नसीब हैं जिन को ख़ुदा की ज़ात मिली

हमें इक आदमी मुश्किल से दस्तियाब हुआ

बिल-आख़िर आग धुआँ हो गई मोहब्बत की

किसी के साथ जो देखा था ख़्वाब ख़्वाब हुआ

तुम्हारे सामने किस को मजाल बोलने की

तुम्हारे सामने हर शख़्स ला-जवाब हुआ

हमारे सामने बच्चे ज़बाँ-दराज़ हुए

हमारे सामने ज़र्रा भी आफ़्ताब हुआ

मिरे असासों में ख़्वाब और हसरतें निकलीं

'कबीर' इश्क़ में मेरा भी एहतिसाब हुआ

'कबीर' हो गए बरबाद हम को होना था

तुम्हें ये पूछे कोई तुम को क्या सवाब हुआ

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