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जिस तरफ़ देखिए बाज़ार उदासी का है - इनआम आज़मी कविता - Darsaal

जिस तरफ़ देखिए बाज़ार उदासी का है

जिस तरफ़ देखिए बाज़ार उदासी का है

शहर में कौन ख़रीदार उदासी का है

अब तो आँखों में भी आँसू नहीं आते मेरे

ये अलग रूप मिरे यार उदासी का है

रूह बेचारी परेशाँ है कहाँ जाए अब

इस क़दर जिस्म पे अब बार उदासी का है

अपने होने का गुमाँ तक नहीं होता मुझ को

जाने ये कौन सा मेआ'र उदासी का है

अब ये एहसास हमेशा मुझे होता है दोस्त

मुझ में इक शख़्स तलबगार उदासी का है

आइना देख के मा'लूम हुआ है मुझ को

ज़ख़्म चेहरे पे भी इस बार उदासी का है

ये उदासी मुझे तन्हा नहीं रहने देती

हाँ तिरे बा'द ये उपकार उदासी का है

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