उसी दरख़्त को मौसम ने बे-लिबास किया
मैं जिस के साए में थक कर उदास बैठा था
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होगा बहुत शदीद तमाज़त का इंतिक़ाम
हैं घर की मुहाफ़िज़ मिरी दहकी हुई आँखें
वो संगलाख़ ज़मीनों में शेर कहता था
हर बे-ख़ता है आज ख़ता-कार देखना