अजब उलझन है जो समझा नहीं हूँ

अजब उलझन है जो समझा नहीं हूँ

जहाँ होता हूँ मैं होता नहीं हूँ

हिक़ारत से मुझे क्यूँ देखता है

बता क्या मैं तिरे जैसा नहीं हूँ

वो मेरी बात जब सुनता नहीं है

जो मेरे दिल में है कहता नहीं हूँ

तअ'ल्लुक़ तोड़ता हूँ दुश्मनों से

कभी यारों से मैं लड़ता नहीं हूँ

जहाँ इज़्ज़त नहीं मिलती है मुझ को

वहाँ पर मैं कभी जाता नहीं हूँ

रवानी में मुझे रहना पड़ेगा

मैं दरिया हूँ कोई सहरा नहीं हूँ

भड़कता हूँ मैं अपनी लौ से 'गौहर'

किसी की आग से जलता नहीं हूँ

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