वो तबस्सुम था जहाँ शायद वहीं पर रह गया

वो तबस्सुम था जहाँ शायद वहीं पर रह गया

मेरी आँखों का हर इक मंज़र कहीं पर रह गया

मैं तो हो कर आ गया आज़ाद उस की क़ैद से

दिल मगर इस जल्द-बाज़ी में वहीं पर रह गया

कौन सज्दों में निहाँ है जो मुझे दिखता नहीं

किस के बोसे का निशाँ मेरी जबीं पर रह गया

हम को अक्सर ये ख़याल आता है उस को देख कर

ये सितारा कैसे ग़लती से ज़मीं पर रह गया

हम लबों को खोल ही कब पाए उस के सामने

इक नया इल्ज़ाम फिर देखो हमीं पर रह गया

(913) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Wo Tabassum Tha Jahan Shayad Wahin Par Rah Gaya In Hindi By Famous Poet Imtiyaz Ahmad. Wo Tabassum Tha Jahan Shayad Wahin Par Rah Gaya is written by Imtiyaz Ahmad. Complete Poem Wo Tabassum Tha Jahan Shayad Wahin Par Rah Gaya in Hindi by Imtiyaz Ahmad. Download free Wo Tabassum Tha Jahan Shayad Wahin Par Rah Gaya Poem for Youth in PDF. Wo Tabassum Tha Jahan Shayad Wahin Par Rah Gaya is a Poem on Inspiration for young students. Share Wo Tabassum Tha Jahan Shayad Wahin Par Rah Gaya with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.