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इक़रार - इमरान शनावर कविता - Darsaal

इक़रार

तिरी संजीदा बातें याद आएँ तो हँसाती हैं

तिरी सब भोलपन में की हुई बातें सताती हैं

तिरा ये बचपना तो जाने कब जाएगा जान-ए-जाँ

तुझे भी प्यार करना जाने कब आएगा जान-ए-जाँ

भरी महफ़िल में सब के सामने इक़रार करता हूँ

मैं तुम से प्यार करता हूँ तुम्ही से प्यार करता हूँ

न हो मुझ पर यक़ीं तुम को तो इक दिन आज़मा लेना

और उस के बा'द जान-ए-जाँ मुझे अपना बना लेना

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