एक तितली उड़ी
एक तितली उड़ी
गुल्सिताँ को चली
डाली डाली बढ़ी
ग़ुंचा ग़ुंचा फिरी
उस की इक फूल से
दोस्ती हो गई
ख़ुश-नवा सब परिंदे चहकने लगे
ख़ार तक ख़ुश-दिली से महकने लगे
फूल ने जड़ की मेहनत का रस
ख़ुद निछावर किया
और तितली मोहब्बत के रंगीन पल
छोड़ कर उड़ गई
फिर न तितली मिली
और न गुल खिल सका
बूटे बूटों तुले आ गए
और फिर गुल्सिताँ छावनी बन गया
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