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तुम ने ये माजरा सुना है क्या - इमरान शमशाद कविता - Darsaal

तुम ने ये माजरा सुना है क्या

तुम ने ये माजरा सुना है क्या

जो भी होना है हो चुका है क्या

वो मुसाफ़िर जो रास्ते में था

मंज़िलों से गुज़र गया है क्या

कोई होता नहीं है आप के साथ

आप के साथ मसअला है क्या

ये जो तदबीर कर रहा हूँ मैं

ये भी तक़दीर में लिखा है क्या

सोचने वाली बात है 'इमरान'

कोई ये बात सोचता है क्या

दल बदल जाए घर बदल जाए

आदमी का कोई पता है क्या

क्या है ये मुस्ततील तन्हाई

ये उदासी का दायरा है क्या

ग़ौर से कौन देखता है यहाँ

इन चराग़ों में जल रहा है क्या

क्यूँ वो सर पर सवार है 'इमरान'

तेरे दिल से उतर गया है क्या

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