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शोर में इर्तिकाज़ मिलता है - इमरान शमशाद कविता - Darsaal

शोर में इर्तिकाज़ मिलता है

शोर में इर्तिकाज़ मिलता है

तब कहीं जा के राज़ मिलता है

गूँज उठती है दूर तक आवाज़

सोज़ से जैसे साज़ मिलता है

आप ही आप हाथ मलते हुए

ज़िंदगी का जवाज़ मिलता है

ख़्वाब मिलते हैं मख़मलीं किस को

किस को बिस्तर गुदाज़ मिलता है

किस से होती हैं राज़ की बातें

किस को वो बे-नियाज़ मिलता है

देखिए कौन सी हवाओं में

वो हवाई-जहाज़ मिलता है

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