हमारी मोहब्बत नुमू से निकल कर कली बन गई थी मगर थी नुमू में
हमारी मोहब्बत नुमू से निकल कर कली बन गई थी मगर थी नुमू में
निगाहों से बातें किए जा रहे थे अटकती झिझकती हुई गुफ़्तुगू में
न दे हम को इल्ज़ाम तू ये कि हम ने तिरी चाह में कुछ किया ही नहीं है
मकाँ खोद डाले ज़माँ नोच डाले कहाँ आ गए हम तिरी जुस्तुजू में
मुझे ये मिला है मुझे वो मिला है मुझे सब मिला है मगर ये गिला है
मैं क्या माँगता था ये क्या मिल गया है कि सब मिल गया है तिरी आरज़ू में
कहीं ख़ुशबुओं की ज़रूरत पड़ी तो तुम्हें सोच कर साँस खींचे गए हैं
न जाने कहाँ से चली आ रही है ये ख़ुशबू तुम्हारी हमारे लहू में
भटकता फिरा मैं इधर से उधर और उधर से इधर और किधर से किधर
धुआँ-दार महफ़िल न जाम ओ सुबू में मज़ा जो है वो है फ़क़त अपनी ख़ू में
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