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कब कहा मैं ने मुझे सारा ज़माना चाहिए - इमरान साग़र कविता - Darsaal

कब कहा मैं ने मुझे सारा ज़माना चाहिए

कब कहा मैं ने मुझे सारा ज़माना चाहिए

सिर्फ़ मुझ को आप के दिल में ठिकाना चाहिए

अक़्ल कहती है कि उस को भूल जाना चाहिए

दिल ये कहता है उसे अपना बनाना चाहिए

जो हमारे बा'द आएँ कम से कम भटकें न वो

कू-ए-फ़न में इक दिया ऐसा जलाना चाहिए

ता-हद-ए-इम्कान हम ने ही मनाया है तुम्हें

हम कभी रूठें तो तुम को भी मनाना चाहिए

अपनी ख़ातिर छोड़िए औरों की ख़ातिर ही सही

कम से कम महफ़िल में तुम को मुस्कुराना चाहिए

राह तकते तकते उस की एक अर्सा हो गया

जाने वाले को तो अब तक लौट आना चाहिए

सोना चाँदी खा के 'साग़र' ज़िंदा रह सकते नहीं

ज़िंदा रहने के लिए तो आब-ओ-दाना चाहिए

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