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लोगों के सभी फ़लसफ़े झुटला तो गए हम - इमरान हुसैन आज़ाद कविता - Darsaal

लोगों के सभी फ़लसफ़े झुटला तो गए हम

लोगों के सभी फ़लसफ़े झुटला तो गए हम

दिल जैसे भी समझा चलो समझा तो गए हम

मायूस भला क्यूँ हैं ये दुनिया के मनाज़िर

अब आँखों में बीनाई लिए आ तो गए हम

किस बात पे रूठे दर-ओ-दीवार-ए-मकाँ हैं

कुछ देर से आए हैं मगर आ तो गए हम

ख़ुद राख हुए सुब्ह तलक सच है ये लेकिन

ऐ रात तिरे जिस्म को पिघला तो गए हम

रोए हँसे उजड़े बसे बिछड़े भी मिले भी

दिल सारे तमाशे तुझे दिखला तो गए हम

क्यूँ हाशिए पर आज भी रखती है कहानी

किरदार निभाने का हुनर पा तो गए हम

अब बढ़ के ज़रा ढूँढ लें मंज़िल के निशाँ भी

उकताए हुए रास्ते बहला तो गए हम

साबुन की तरह ख़ुद को गलाना पड़ा बे-शक

पर लफ़्ज़-ए-मोहब्बत तुझे चमका तो गए हम

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