इस लिए सब से अलग है मिरी ख़ुशबू 'आमी'
मुश्क-ए-मज़दूर पसीने में लिए फिरता हूँ
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Gulzar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1463) Peoples Rate This
कोई मेरा इमाम था ही नहीं
कोई मजनूँ कोई फ़रहाद बना फिरता है
बात दिल को मिरे लगी नहीं है
एहतियातन उसे छुआ नहीं है
आख़िर इक दिन सब को मरना होता है
हम-साए में शैतान भी रहता है ख़ुदा भी
परिंदा आइने से क्या लड़ेगा
कुछ एहतिमाम न था शाम-ए-ग़म मनाने को
इस दश्त से आगे भी कोई दश्त-ए-गुमाँ है
तुझ से इक हाथ क्या मिला लिया है
मैं सच कहूँ पस-ए-दीवार झूट बोलते हैं
ज़ख़्म अब तक वही सीने में लिए फिरता हूँ