मुफ़्त बोसा हसीं नहीं देते
दिल जो देते हैं दाम लेते हैं
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क्यूँ देखिए न हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद की तरफ़
जब नहीं कुछ ए'तिबार-ए-ज़िंदगी
करता है ऐ 'असर' दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता का गिला
कैसा आना कैसा जाना मेरे घर क्या आओगे
उल्टी क्यूँ पड़ती है तदबीर ये हम क्या जानें
लोग जब तेरा नाम लेते हैं
जान कर 'मीर' का कलाम 'असर'
ख़ूब-ओ-ज़िश्त-ए-जहाँ का फ़र्क़ न पूछ
गुलशन में कौन बुलबुल-ए-नालाँ को दे पनाह
ख़ुदा जाने 'असर' को क्या हुआ है
रोते हैं सुन के कहानी मेरी