दिल की हालत से ख़बर देती है
'असर' आशुफ़्ता-बयानी मेरी
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दोस्ती की तुम ने दुश्मन से अजब तुम दोस्त हो
ख़ुदा जाने 'असर' को क्या हुआ है
ख़ूब-ओ-ज़िश्त-ए-जहाँ का फ़र्क़ न पूछ
हसीनों की जफ़ाएँ भी तलव्वुन से नहीं ख़ाली
मेरे सर में जो रात चक्कर था
हुस्न की जिंस ख़रीदार लिए फिरती है
उल्टी क्यूँ पड़ती है तदबीर ये हम क्या जानें
सुब्ह-दम रोती जो तेरी बज़्म से जाती है शम्अ
जब ख़ुदा को जहाँ बसाना था
रोते हैं सुन के कहानी मेरी
जब नहीं कुछ ए'तिबार-ए-ज़िंदगी
कुछ समझ कर उस मह-ए-ख़ूबी से की थी दोस्ती