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ज़बान-ए-हाल से हम शिकवा-ए-बेदाद करते हैं - इम्दाद इमाम असर कविता - Darsaal

ज़बान-ए-हाल से हम शिकवा-ए-बेदाद करते हैं

ज़बान-ए-हाल से हम शिकवा-ए-बेदाद करते हैं

दहान-ए-ज़ख़्म-ए-क़ातिल दम-ब-दम फ़रियाद करते हैं

समझ कर क्या असीरान-ए-क़फ़स फ़रियाद करते हैं

तवज्जोह भी कहीं फ़रियाद पर सय्याद करते हैं

अज़ाब-ए-क़ब्र से पाते हैं राहत इश्क़ के मुजरिम

पस-ए-मर्दां जफ़ाएँ यार की जब याद करते हैं

न कह बहर-ए-ख़ुदा तू बंदगान-ए-इश्क़ को काफ़िर

बुतों की याद में ज़ाहिद ख़ुदा को याद करते हैं

ज़रा सय्याद चल कर देख तू क्या हाल है उन का

असीरान-ए-क़फ़स फ़रियाद पर फ़रियाद करते हैं

बुतान-ए-संग-दिल के हाथ से दिल ही नहीं नालाँ

बराबर दैर में नाक़ूस भी फ़रियाद करते हैं

बनाते हैं हज़ारों ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ ख़ंजर-ए-ग़म से

दिल-ए-नाशाद को हम इस तरह पुर-शाद करते हैं

मिले लज़्ज़त जो ईज़ा से तो बाज़ आते हैं ईज़ा से

सितम-ईजाद हैं तर्ज़-ए-सितम ईजाद करते हैं

'असर' को देख कर क्या रूह को सदमा पहुँचता है

ख़ुदा समझे बुतों से किस क़दर बे-दाद करते हैं

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