तेरी जानिब से मुझ पे क्या न हुआ
तेरी जानिब से मुझ पे क्या न हुआ
ख़ैर गुज़री कि तू ख़ुदा न हुआ
क्यूँ तिरा आश्ना अदू ठहरे
जब तिरे ग़म से आश्ना न हुआ
मर के उस की गली की ख़ाक हुआ
मैं फ़ना हो के भी फ़ना न हुआ
मार डाला मुझे अदू के लिए
हैफ़ तू सब्र-आज़मा न हवा
छूटता क्या तुम्हारे हाथों से
ख़ून-ए-अहल-ए-वफ़ा हिना न हुआ
आ निकलता वो मेरे कूचे में
तुझ से इतना भी ऐ दुआ न हुआ
कोई पर्वा नहीं कमीनों की
आसमाँ मेहरबाँ हुआ न हुआ
अब सितम ग़ैर पर वो करते हैं
मेरा मरना मुझे बुरा न हुआ
ऐ 'असर' तुझ को फिर गिला क्या है
जब किसी का वो बे-वफ़ा न हुआ
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