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शैख़ के हाल पर तअस्सुफ़ है - इम्दाद इमाम असर कविता - Darsaal

शैख़ के हाल पर तअस्सुफ़ है

शैख़ के हाल पर तअस्सुफ़ है

शक्ल-ए-रोज़ी की इक तसव्वुफ़ है

जिस की औक़ात हो तसव्वुफ़ पर

उस के इस रोज़गार पर तुफ़ है

जिन को दावा है हक़-शनासी का

उन से बंदे को भी तआरुफ़ है

न तो इरफ़ाँ के उन में हैं अंदाज़

मअरिफ़त से न कुछ तशर्रुफ़ है

कैसी तामील-ए-हुक्म ख़ालिक़ की

कैसा इस्लाम सद-तअस्सुफ़ है

कौन से अमर-ए-दीं को कोई कहे

दीन का दीन ही तसव्वुफ़ है

दीन-ए-अहमद से हो जो बाहर बात

वही इस अहद में तसव्वुफ़ है

माल जो कुछ है बेवक़ूफ़ों का

शैख़ का माल बे-तकल्लुफ़ है

है 'असर' ये तसर्रुफ़-ए-बे-जा

और कोई नहीं तसर्रुफ़ है

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