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रोते हैं सुन के कहानी मेरी - इम्दाद इमाम असर कविता - Darsaal

रोते हैं सुन के कहानी मेरी

रोते हैं सुन के कहानी मेरी

काश सुनते वो ज़बानी मेरी

कट गया ग़ैर मरे नालों से

वाह-री सैफ़-ज़बानी मेरी

आइना देख के फ़रमाते हैं

किस ग़ज़ब की है जवानी मेरी

फिर तुम्हें नींद नहीं आने की

कहीं सुन ली जो कहानी मेरी

बार किया पाँव तिरी महफ़िल में

है सुबुक तुझ पे गिरानी मेरी

हमा-तन-गोश बने सुनते हैं

ग़ैर कहता है कहानी मेरी

याद आऊँगा जफ़ा-कारों को

बे-निशानी है निशानी मेरी

इल्तिजा एक मुक़द्दर दो थे

ग़ैर की मानी न मानी मेरी

हश्र में कुछ न हुआ मुझ से सवाल

वाह-री हेच-मदानी मेरी

अब उठेंगे तिरे दर से मर कर

कभी उठती नहीं ठानी मेरी

मेरे अशआर फ़ुग़ान-ए-दिल हैं

क़द्र करता है 'फ़ुग़ानी' मेरी

ख़ुसरव-ए-मुल्क-ए-सुख़न-दानी हूँ

दाद है बाज-सतानी मेरी

दिल में पोशीदा रहेगी कब तक

आतिश-ए-शौक़-ए-निहानी मेरी

तार-ए-गेसू से नज़र जा उलझी

देखना रेशा-दवानी मेरी

दिल की हालत से ख़बर देती है

'असर' आशुफ़्ता-बयानी मेरी

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