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किसी का दिल को रहा इंतिज़ार सारी रात - इम्दाद इमाम असर कविता - Darsaal

किसी का दिल को रहा इंतिज़ार सारी रात

किसी का दिल को रहा इंतिज़ार सारी रात

फ़लक को देखा किए बार बार सारी रात

तड़प तड़प के तमन्ना में करवटें बदलीं

न पाया दिल ने हमारे क़रार सारी रात

इधर तो शम्अ थी गिर्यां उधर थे हम गिर्यां

इसी तरह पे रहे अश्क-बार सारी रात

ख़याल-ए-शम्-रुख़-ए-यार में जले ता-सुब्ह

लिया क़रार न परवाना-वार सारी रात

न पूछ सोज़-ए-जुदाई को हम से ऐ हमदम

जला किया ये दिल-ए-दाग़दार सारी रात

मिज़ा के इश्क़ से आई न नींद आँखों में

नज़र खटकती रही बन के ख़ार सारी रात

ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह में बहा किए आँसू

बँधा रहा मिरे रोने का तार सारी रात

न पूछ हम से 'असर' रात किस तरह काटी

अजब तरह का रहा इंतिशार सारी रात

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