ने आदमी पसंद न इस को ख़ुदा पसंद
ने आदमी पसंद न इस को ख़ुदा पसंद
है आइने में क़ैद मिरा आइना-पसंद
दो-चार दिन भी हम से निबाही नहीं गई
वो मो'तदिल मिज़ाज था मैं इंतिहा पसंद
वो ख़ुद-फ़रेब शख़्स था पत्थर-शनास था
आया न उस को कोई भी अपने सिवा पसंद
पूछे है हम ने काहे किया कुफ़्र इख़्तियार
ग़फ़लत पसंद है न हमें आसरा पसंद
ग़ौग़ा-ए-मर्ग चारों तरफ़ फैलने लगा
क्या इस जहाँ को छोड़ गए बादिया-पसंद
उस पर ही भेजता है वो आफ़त भी मौत भी
शायद उसे ग़रीब का बच्चा है ना-पसंद
आकाश एक शख़्स है दुनिया से मुख़्तलिफ़
पहली नज़र में ही तुम्हें आ जाएगा पसंद
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