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वो बेज़ार मुझ से हुआ ज़ार मैं हूँ - इमाम बख़्श नासिख़ कविता - Darsaal

वो बेज़ार मुझ से हुआ ज़ार मैं हूँ

वो बेज़ार मुझ से हुआ ज़ार मैं हूँ

वो मय-ख़्वार ग़ैरों में है ख़्वार मैं हूँ

नहीं इश्क़ से ज़र्द ज़रदार मैं हूँ

अगर है वो यूसुफ़ ख़रीदार मैं हूँ

तमन्ना है साक़ी कभी बज़्म-ए-मय में

वो सरशार हो और हुश्यार मैं हूँ

हुई जम्अ' बे-दर्दी-ओ-दर्दमंदी

दिल-आज़ार वो है सितमगार मैं हूँ

वो करता है बातें मैं करता हूँ आहें

गुहर-बार वो है शरर-बार मैं हूँ

वही बोलता है जो मैं बोलता हूँ

अगर वो है बुलबुल तो मिन्क़ार मैं हूँ

दिगर-गूँ है हर आन वज़-ए-मोहब्बत

कभी ग़ैर मैं हूँ कभी यार मैं हूँ

कहा हज़रत-ए-'दर्द' ने ख़ूब 'नासिख़'

ये ज़ुल्फ़-ए-बुताँ का गिरफ़्तार मैं हूँ

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