Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_dbaa7b2a50393b8623c97a1592d3ddfc, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
है दिल-ए-सोज़ाँ में तूर उस की तजल्ली-गाह का - इमाम बख़्श नासिख़ कविता - Darsaal

है दिल-ए-सोज़ाँ में तूर उस की तजल्ली-गाह का

है दिल-ए-सोज़ाँ में तूर उस की तजल्ली-गाह का

रू-ए-आतिशनाक हर शोला है मेरी आह का

वस्ल क्या हम ख़ाकसारों को हो इस दिल-ख़्वाह का

ख़ाक में आलूदा होना कब है मुमकिन माह का

नूर-अफ़शाँ जब से है दिल में ख़याल उस माह का

तूर का शोला धुआँ है मेरी शम-ए-आह का

क़ामत-ए-मौज़ूँ नज़र आए मुझे जा-ए-अलिफ़

था शुरू-ए-आशिक़ी दिन मेरी बिस्मिल्लाह का

समझे मय-कश देख कर अबरू तिरी बाला-ए-चश्म

मय-कदे से मर्तबा आला है बैतुल्लाह का

आमद-ए-ख़त में तो होने दे निगाहों का गुज़र

देख ले बचने नहीं पाता है सब्ज़ा राह का

ख़ल्क़ ने क़ुरआन देखा जब हुआ माह-ए-रजब

हम ने देखा मुसहफ़-ए-रुख़्सार अपने माह का

आते ही उस तिफ़्ल के रौशन सियह-ख़ाना हुआ

शम्अ साँ जल्वा है उस के क़ामत-ए-कोताह का

यार का 'नासिख़' फटा है पैरहन तो ऐब क्या

है कताँ को चाक करना काम नूर-ए-माह का

(936) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Hai Dil-e-sozan Mein Tur Uski Tajalli-gah Ka In Hindi By Famous Poet Imam Bakhsh Nasikh. Hai Dil-e-sozan Mein Tur Uski Tajalli-gah Ka is written by Imam Bakhsh Nasikh. Complete Poem Hai Dil-e-sozan Mein Tur Uski Tajalli-gah Ka in Hindi by Imam Bakhsh Nasikh. Download free Hai Dil-e-sozan Mein Tur Uski Tajalli-gah Ka Poem for Youth in PDF. Hai Dil-e-sozan Mein Tur Uski Tajalli-gah Ka is a Poem on Inspiration for young students. Share Hai Dil-e-sozan Mein Tur Uski Tajalli-gah Ka with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.