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आ गया जब से नज़र वो शोख़ हरजाई मुझे - इमाम बख़्श नासिख़ कविता - Darsaal

आ गया जब से नज़र वो शोख़ हरजाई मुझे

आ गया जब से नज़र वो शोख़ हरजाई मुझे

कू-ब-कू दर दर लिए फिरती है रुस्वाई मुझे

काम आशिक़ को किसी की ऐब-बीनी से नहीं

हुस्न-बीनी को ख़ुदा ने दी है बीनाई मुझे

जौर सहता हूँ बुतों के ना-तवानी के सबब

दिल उठा लूँ इस क़दर कब है तवानाई मुझे

जिस तरह आता है पीरी में जवानी का ख़याल

वस्ल की शब याद रोज़-ए-हिज्र में आई मुझे

गिनती एक इक नाम की हर गोर में मुर्दे हैं दफ़्न

बाद-ए-मुर्दन भी हुई दुश्वार तन्हाई मुझे

मिस्ल-ए-साग़र बज़्म-ए-आलम में मैं कब ख़ंदाँ हुआ

किस लिए देता है गर्दिश चर्ख़-ए-मीनाई मुझे

ऐन दानाई है 'नासिख़' इश्क़ में दीवानगी

आप सौदाई हैं जो कहते हैं सौदाई मुझे

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