किसी की बात कोई बद-गुमाँ न समझेगा
ज़मीं का दर्द कभी आसमाँ न समझेगा
Habib Jalib
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Gulzar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
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गर्द-ओ-ग़ुबार धूप के आँचल पे छा गए
आस्था का रंग आ जाए अगर माहौल में
तेरी ख़ुशबू से मोअत्तर है ज़माना सारा
मौसम सूखा सूखा सा था लेकिन ये क्या बात हुई
राखी बंधन
शहर में ओले पड़े हैं सर सलामत है कहाँ
जो मज़े आज तिरे ग़म के अज़ाबों में मिले
उन के रुख़्सत का वो लम्हा मुझे यूँ लगता है
टिमटिमाता हुआ मंदिर का दिया हो जैसे
जाने वाले इतना बता दो फिर तुम कब तक आओगे