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सूरज की मीज़ान लिए हम, वो थे बर्फ़ की बाट लिए - इमाम अाज़म कविता - Darsaal

सूरज की मीज़ान लिए हम, वो थे बर्फ़ की बाट लिए

सूरज की मीज़ान लिए हम, वो थे बर्फ़ की बाट लिए

इस हालत में हम दोनों ने अपने जीवन काट लिए

एक ही घर में रहते थे हम लेकिन दोनों अनजाने थे

जब इस का एहसास हुआ तो अपने रस्ते पाट लिए

कोई गाहक मिल जाता तो अच्छी क़ीमत मिल जाती

बीच ख़रीदारों के थे हम अपने हुनर की बाट लिए

राजाओं का दौर गया और साथ ज़मीं-दारी भी गई

लेकिन गाँव का मुखिया जीता है नवाबी ठाट लिए

'आज़म' इस वहशी दुनिया में हम ने ये भी देखा है

ख़ून बहा जो अपनों का वो ख़ून अपनों ने चाट लिए

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