मौसम सूखा सूखा सा था लेकिन ये क्या बात हुई

मौसम सूखा सूखा सा था लेकिन ये क्या बात हुई

केवल उस के कमरे में ही रात गए बरसात हुई

मैं ने समझा, उस ने समझा, भीड़ में भी ख़ामोशी थी

देखने वाले कुछ भी न समझे लेकिन फिर भी बात हुई

बिन माँगे मिल जाए मोती तो इस को तक़दीर कहो

दामन फैला कर दुनिया मिल जाए तो ख़ैरात हुई

संकट के दिन थे तो साए भी मुझ से कतराते थे

सुख के दिन आए तो देखो दुनिया मेरे सात हुई

जीवन के इस खेल में अपना ज्ञान भी धोका देता है

उल्टे सारे दाव हमारे शह भी दी तो मात हुई

जाते जाते तन्हाई का ग़म देने वो आए थे

तुम ही बोलो क्या ये उन की उल्फ़त की सौग़ात हुई

'आज़म' भूलना चाहे भी तो अब तक भूल न पाए वो

उन की यादों से वाबस्ता ऐसे मेरी ज़ात हुई

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