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वक़्त वक़्त की बात है या दस्तूर है दुनिया का साईं - इलियास इश्क़ी कविता - Darsaal

वक़्त वक़्त की बात है या दस्तूर है दुनिया का साईं

वक़्त वक़्त की बात है या दस्तूर है दुनिया का साईं

दिन ढलते ही बढ़ जाता है क़द से ख़ुद साया साईं

ढूँडने वाले पा लेती हैं अंत समुंदर का साईं

थाह मिली नहीं जिस की किसी को दिल है वो दरिया साईं

मंज़िल-ए-इश्क़ में ऐसे ऐसे होश-रुबा कुछ मोड़ मिले

राह दिखाने वाले घर का भूल गए रस्ता साईं

इश्क़ के तूफ़ानी दरिया में जो डूबा वो पार गया

कच्चे घड़े ने बीच भँवर में किस का साथ दिया साईं

ये दाता की देन है बादल घिर के समुंदर पर बरसा

और किनारे प्यासा कोई क़तरे को तरसा साईं

जो तूफ़ान आया था उस के अब कोई आसार नहीं

क़ुल्ज़ुम-ए-दर्द में दिल का सफ़ीना कब का डूब गया साईं

कान में मेरे चुपके चुपके कौन ये कहता है 'इश्क़ी'

हर दिन दुनिया वही पुरानी हर शब ख़्वाब नया साईं

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