वक़्त वक़्त की बात है या दस्तूर है दुनिया का साईं
वक़्त वक़्त की बात है या दस्तूर है दुनिया का साईं
दिन ढलते ही बढ़ जाता है क़द से ख़ुद साया साईं
ढूँडने वाले पा लेती हैं अंत समुंदर का साईं
थाह मिली नहीं जिस की किसी को दिल है वो दरिया साईं
मंज़िल-ए-इश्क़ में ऐसे ऐसे होश-रुबा कुछ मोड़ मिले
राह दिखाने वाले घर का भूल गए रस्ता साईं
इश्क़ के तूफ़ानी दरिया में जो डूबा वो पार गया
कच्चे घड़े ने बीच भँवर में किस का साथ दिया साईं
ये दाता की देन है बादल घिर के समुंदर पर बरसा
और किनारे प्यासा कोई क़तरे को तरसा साईं
जो तूफ़ान आया था उस के अब कोई आसार नहीं
क़ुल्ज़ुम-ए-दर्द में दिल का सफ़ीना कब का डूब गया साईं
कान में मेरे चुपके चुपके कौन ये कहता है 'इश्क़ी'
हर दिन दुनिया वही पुरानी हर शब ख़्वाब नया साईं
(1881) Peoples Rate This