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'इश्क़ी'-साहिब लिखना है तो कोई नई तहरीर लिखो - इलियास इश्क़ी कविता - Darsaal

'इश्क़ी'-साहिब लिखना है तो कोई नई तहरीर लिखो

'इश्क़ी'-साहिब लिखना है तो कोई नई तहरीर लिखो

अब तक तुम ने ख़्वाब लिखे अब ख़्वाबों की ताबीर लिखो

इस उलझन को सुलझाने की कौन सी है तदबीर लिखो

इश्क़ अगर है जुर्म तो मुजरिम राँझा है या हीर लिखो

जहाँ भी क़स्र-ए-शीरीं देखो 'ख़ुसरो' की जागीर लिखो

कोह जहाँ हाएल हुआ उस पर ख़ूँ से जू-ए-शीर लिखो

दश्त से आज़ादी की हवाएँ उन को बुलाने आती हैं

अहल-ए-जुनूँ को रोकने वाली कौन सी है ज़ंजीर लिखो

शहर-ए-सुख़न के इज़्ज़त-दारो कुछ तो किसी का पास करो

कोई तो होगा जिस को आख़िर तुम साहिब-ए-तौक़ीर लिखो

हम-वतनों के दर्द का दरमाँ ऐसा कुछ दुश्वार नहीं

नाम-ए-वतन है इस्म-ए-आज़म ख़ाक-ए-वतन इक्सीर लिखो

अपनी कमंदें फेंक के जिस को क़ैद किया है ज़ुल्मत ने

वो सूरज कब उभरेगा कब फैलेगी तनवीर लिखो

अपने अहद की सफ़्फ़ाकी पर ये ख़ामोशी तंज़ नहीं

कोई तो होगा इस का सबब क्यूँ बैठे हो दिल-गीर लिखो

जब तक सर से ख़ूँ न बहेगा कोह-कनी है ख़ाम ख़याल

तेशे को ख़ल्लाक़ कहो या पत्थर को तस्वीर लिखो

ढा दे जो इंसान के दिल में रंग ओ नस्ल की दीवारें

कोई तो दस्तूर-ए-मोहब्बत ऐसा आलमगीर लिखो

हर हर दौर के लिखने वाले हाशिए उस के लिखते हैं

अपने अहद में नुस्ख़ा-ए-दिल की तुम भी कोई तफ़्सीर लिखो

हर्फ़ की ताक़त बे-पायाँ है हर्फ़ के हैं इम्कान बहुत

हर्फ़ को ज़िंदा करना सीखो फिर चाहे तक़दीर लिखो

दिल पर जिस के नक़्श न उभरीं वो क्या अबरू कैसी नज़र

कितना ही तुम तीर नज़र को अबरू को शमशीर लिखो

रौशन कैसे होगा सवाद-ए-हर्फ़ जो ख़ून-ए-दिल न जला

चर्बा तुम 'ग़ालिब' का उतारो चाहे ब-रंग-ए-'मीर' लिखो

अपने दुखड़े लिख लिख कर दीवान तो तुम ने जम्अ किया

दिल को जो बदले अब कोई ऐसा शेर-ए-पुर-तासीर लिखो

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