यार परिंदे!
यार परिंदे! यहीं कहीं था नीम के पेड़ का दयार
मिट्टी की कच्ची दीवारें चाँदी जैसे यार
यस्सू पुंजू हार कबूतर, कंचे वनचे, ताश
जीतने वाले नालाँ, हारने वाले थे ख़ुश-बाश
उल्टे तवे की रोटी साथ में खट्टा मीठा साग
मक्खन की डलियों में जैसे माँ के प्यार का राग
दो कमरों के घर में इतने घने घनेरे लोग
नीम की छाँव बाँटने आते गाँव भर के लोग
घर का दरवाज़ा था साँझा जैसे घर की माँ
सहन में इतनी वुसअ'त होती जैसे एक जहाँ
यार परिंदे! गाँव वही है वैसा नीम का पेड़
दीवारों पर काँच जड़े हैं दरवाज़ों पर क़ुफ़्ल
शाम ढले ही चौपालें हो जाती हैं सुनसान
चंगीरों की बासी रोटी और डब्बे का दूध
हवा हुईं मक्खन की डलियाँ हवा हुआ वो प्यार
यार परिंदे! नीम के पेड़ की बातों में मत आ
पास के जंगल में ज़ाग़ों के डेरे पर सौ जा
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